होली वसंत ऋतु में फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला भारत के महत्वपूर्ण त्यौहार में से एक है, यह परमुखता भारत और नेपाल में मनाया जाता है, आज लगभग विश्व के कई देशों के लोग इस त्यौहार को मानते है। इस त्यौहार को और भी कई नाम है जैसे फाल्गुनी, धुलेंडी, धुरखेल, राजस्थान में इसे छारंडी के नाम से मानते है ।
होली मुख्य रुप से हिंदुओ का पर्व है लेकिन अब इसे कई धर्म के लोग भी मानते है 

    
     
                    "   गांव की होली   "  

होली सुन के हमारे मन में रंग बिरंगे गुलाल उरने लगते थे। गांव में होली के एक दिन पहले होलिका दहन के दिन हम दोस्तो के साथ शाम के समय लगभग ६ या ७ बजे अपने—अपने  हाथ में कंटर (सरसो तेल का टीन), डालडा का डिब्बा, थाली, लोटा, इत्यादि लेकर गाते बजाते गांव की गलियों में होलिका दहन के जलावन लेने निकलते थे, कोई गोबर का बना ४ या ५ गोइठा देते तो कोई धान के लार, तो कोई रुपिया, जो देने में कतराते उससे जबरदस्ती ले कर भाग जाते  (प्यार से), तो वे गाली भी देते थे जैसे कुत्ता.. कोरिहिया... कोरफूट्टा...हाथ में घाव हो जैतो, आदि आदि 
हमलोग जलवान लेकर गांव के पुराने कॉलेज के आगे सड़क पे जमा कर के धुप अगरबत्ती जला करके उसमे आग लगा देते। गांव की होली में गांव के बहुत सारे लोग होलिका दहन में भाग लेते थे।
होलिका दहन के बाद हम दोस्त लोग घर आके नहा– धोखे खाना खाते फिर सब लोग चौक पे मिलते थोड़ी बात चीत करते,  
" तौय कायल बांस के दो पिचकारी बना लाइहिए, ठीक छै, तहु रंग खरीद लाहिये
" ठीक छै"
कायल सब साथे होली खेल बै"
टीके छै"
अब गांव की होली पहले जैसी नहीं होती है,
कुछ सालो पहले लगभग १० साल पहले गांव की होली में जितना मस्ती होती थी अब नहीं रही,
पहले होली के दिन सब दोस्त साथ में रंग लेकर गांव के गली–गली घूम के जो मिलता सब को रंग लगाते,
हाथ में रंग लगा के रखते थे जब कोई दूर से दिखता तो छिप जाते पास आते ही झट से पकर कर मुंह पर रंग लगा देते फिर गोबर को पानी में मिला कर रखता उस से नहाले देते।
पहले तो बिहार में शराब भी मिलती थी, होली के दिन शराब के दुकान पर भीड़ ऐसे लगती मानो कोई डीलर राशन बाट रहा हो। 
जब शाम होते तो सब दोस्त घर आके दूसरे कपरे पहन कर अबीर का पन्नी हाथ में लेकर गांव घूमने निकलते,
अबीर लेकर घर से निकलते तो पहले माता पिता के पैर पर अबीर डाल कर आशीर्वाद लेते फिर दोस्तो के साथ मोहल्ले के बूढ़े बुजुर्ग से आशीर्वाद लेते, अपने जैसे को गाल पर अबीर लगाते गले मिलते नाचते गाते लड़ते होली खेलते थे।